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परिपूर्ण जीना चाहती हूँ…

  • Writer: Arpita Ke Alfaz
    Arpita Ke Alfaz
  • Sep 30, 2021
  • 1 min read


ओ सूरज, सुना है तुम सबको उजाले बाँटते हो… पर बरसों से मैं तुम्हारे आने की राह देखती हूँ…

मेरे हिस्से की रोशनी कब दोगे मुझे??? रोज़ खुली आँखों से जिसके ख़्वाब देखती हूँ…

देखो अब की बार तुम पिछली गली से, पीठ करके गुजरना नहीं…

सुनो मैं तुम्हें आवाज दे रही हूँ… हाथ पकड़ कर, चाहे ले चलो साथ मुझे तुम, मैं रोशनी का जहाँ देखना चाहती हूँ…

सालों से दम घोंटता है अँधेरा पर अब मैं साँस लेना चाहती हूँ… ठोकरों से पाँव हो चुके हैं घायल, अब रुक कर घाव सूखाना चाहती हूँ…

मरने से पूर्व एक बार सम्पूर्ण जीना चाहती हूँ… मरने से पूर्व एक बार परिपूर्ण चाहती हूँ… -✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’ ©®

 
 
 

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